ब्रिक्स सम्मेलन के बहाने भारत और चीन के बीच रिश्ते में मिठास घुलने की उम्मीद है, क्योंकि चीन के रुख में अचानक बदलाव आए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इसके लिए चीन खुद पहल की है। हालांकि, इस पहल के पीछे उसके निजी हित दिखाई दे रहे हैं। खबर है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सहित तीन मंत्री चीन में हो रहे ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा ले सकते हैं।
दलाईलामा का न करे इस्तेमाल
ब्रिक्स की आधिकारिक वेबसाइट पर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले सारे देशों के मंत्रियों की बैठक का शेड्यूल है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के मुताबिक ये लिखा है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण और ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के चीन में ब्रिक्स के मिनिस्टर लेवल की बैठक में शामिल होने की उम्मीद है। वे ब्रिक्स की वित्तीय एजेंसी नैशनल डिवेलपमेंट बैंक की जून और जुलाई में होने वाली बैठक में भी शरीक हो सकते हैं। वहीं, एनएसए अजीत डोभाल को भी ब्रिक्स की सुरक्षा संबंधित बैठक में शिरकत करनी है।
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दरअसल, अरुणाचल प्रदेश, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता, मसूद अजहर पर बैन और दलाई लामा के दौरे जैसे मुद्दों को लेकर काफी तल्खी दिखाता रहा है। चीन भारत पर ऐसा कोई दबाव नहीं डाल सकता। इसलिए दलाई लामा को लेकर उसकी चिंता बढ़ती जा रही है। चीन ने तिब्बतियों को दलाई लामा से अलग करने की हरसंभव कोशिश की है। तिब्बत में चीनी आबादी को हस्तांतरित कर उसके जन-भूगोल को बदलने का प्रयत्न किया जा रहा है।
चीन जानता है कि जब तक दलाई लामा का पद है, तब तक वह तिब्बतियों की राजनीतिक निष्ठा के बारे में आश्वस्त नहीं रह सकता। चीन ने 1950 में तिब्बत पर जबरन कब्जा किया था। चीन का यह दावा सही नहीं है कि तिब्बत सदा उसकी अधीनता में रहा है। तिब्बत केवल मंगोल और मांचू शासकों के अधीन रहा था। दलाई लामा को दोनों ही शासक धर्मगुरु की प्रतिष्ठा देते रहे।
MP Sab Kuch

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