Thursday, 9 March 2017

दिल्ली के सरकारी स्कूल: पढ़ भी नहीं पाते हैं छठी क्लास के छात्र



दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दो लाख से अधिक छात्र छठी क्लास में पढ़ते हैं। इनमें आधे से ज्यादा किताब भी ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं। यह दावा किसी और ने नहीं बल्कि दिल्ली सरकार की एक रिपोर्ट में किया गया। जून 2016 में दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग ने रिपोर्ट में दावा किया कि स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी के चलते शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है।

इसे सुधारने के लिए दिल्ली सरकार ने नगर निगम समेत सभी सरकारी स्कूलों गेस्ट टीचर्स की नियुक्ति की थी। इसके बाद भी शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं आया।   इंडियास्पेंड की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी के सरकारी स्कूलों में तैनात गेस्ट टीचर्स को सरकारी टीचर्स के मुकाबले 42 फीसदी कम सैलरी मिलती है। इसके अलावा ऐसे शिक्षकों को पेंशन और छुट्टी वाले दिन मिलने वाली सैलरी का लाभ भी नहीं मिलता है।

बीमार होने या स्कूल में लंबी छुट्टी होने पर भी पैसा काटा जाता है। ऐसे में ये गेस्ट टीचर्स केवल खाना-पूर्ति के नाम पर स्कूलों में पढ़ाने के लिए जाते हैं। दिल्ली की साक्षरता दर 86 फीसदी है, लेकिन जब आधे से ज्यादा बच्चों को ठीक से पढ़ना नहीं आता हो, तो यह गंभीर चिंता का विषय है। ऐसा नहीं है कि ये हाल केवल दिल्ली का हो। देश के अन्य राज्यों के हालात भी ऐसे हैं।

इन राज्यों में, छह में एक शिक्षक का पद खाली है। देश के सभी स्कूलों में करीब 26 करोड़ बच्चे पढ़ते हैं। इनमें आधे से ज्यादा बच्चे सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। दिल्ली में शिक्षकों की कमी होना ताज्जुब की बात है, क्योंकि यह देश का सबसे धनी राज्य भी है।  दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हर छात्र पर सरकार राष्ट्रीय औसत से 66 फीसदी कम खर्च करती है। 2014-15 में दिल्ली सरकार ने प्रत्येक छात्र पर 3,852 रुपये खर्च किए थे, जबकि अन्य प्रदेशों में 11,252 रुपये खर्च किए गए थे।

दिल्ली में शिक्षकों को नौकरी पर रखने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि अब कई प्रदेशों में इस तरह की प्रक्रिया को हटा दिया गया है। लेकिन दिल्ली राज्य में इसका अभी भी पालन हो रहा है।

इस प्रक्रिया पर नजर डालने पर पता चला कि दिल्ली में अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति करता है। इस बोर्ड के पास कई विभागों में नियुक्ति करने का अधिकार है।

वहीं अन्य राज्यों में वहां का शिक्षा विभाग ही शिक्षकों की नियुक्ति करता है। इस तरह से नियुक्ति प्रक्रिया काफी लंबी और थकाऊ हो जाती है। कई बार इसमें दो साल तक का समय लग जाता है, जिससे कई बार अभ्यार्थी की दूसरी जगह नौकरी लग जाती है।





















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